जयचंद
From जैनकोष
जयपुर के पास फागी ग्राम में जन्मे। पं०टोडरमल का प्रवचन सुनने जयपुर आये। अपने पुत्र नन्दलाल से एक विदेशी विद्वान को परास्त कराया। ढुंढारी भाषा में अनेक ग्रन्थों पर वचनिकायें लिखीं यथा―सर्वार्थ सिद्धि (वि.१८६१), प्रमेयरत्नमाला (वि.१८६३), कार्तिकेयानुप्रेक्षा (वि.१८६३), द्रव्य संग्रह (वि.१८६३), समयसार (वि.१८६४), अष्टपाहुड़ (वि.१८६७), ज्ञानार्णव (वि.१८६९), भक्तामर कथा (वि.१८७०), चन्द्र प्रभचरित के द्वि.सर्ग का न्याय भाग ‘मतसमुच्चय’ ( वि.१८७४), आप्त मीमांसा (वि.१८८६), धन्य कुमार चरित, सामायिक पाठ। इनके अतिरिक्त हिन्दी भाषा में अपनी स्वतंत्र रचनायें भी की। यथा–पदसंग्रह, अध्यात्म रहस्यपूर्ण चिट्ठी (वि.१८७०) समय– वि.१८२०-१८८६ (ई.१७६३-१८२९)। (हि.जै.सा.इ./पृ.१८९/कामताप्रसाद); (र.क.श्रा./प्र.पृ.१६/पं.परमानन्द); (न.दी./प्र.७/रामप्रसाद जैन बम्बई)। (ती./४/२९०)