चित्रकर्म
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/1/5/17/4 काष्ठपुस्तचित्रकर्माक्षनिक्षेपादिषु सोऽयं इति स्थाप्यमाना स्थापना। = काष्ठकर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म और अक्षनिक्षेप आदि में ‘यह वह है’ इस प्रकार स्थापित करने की स्थापना कहते हैं।
देखें निक्षेप - 4।
पुराणकोष से
चित्रकला । इसके हो प्रकार थे । रेखाचित्र और वर्णचित्र । इसमें तीनों आयाम-लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई दिखाये जाते थे । श्रीमती का चित्र इसी प्रकार का था । इसमें हाव, भाव का प्रदर्शन भी बड़ा हृदयहारी था । महापुराण 7.108-120