जाति (सामान्य)
From जैनकोष
- लक्षण
न्या.सू./मू./२/२/६६ समानप्रवासात्मिका जाति:।६६। =द्रव्यों के आपस में भेद रहते भी जिससे समान बुद्धि उत्पन्न हो उसे जाति कहते हैं।
रा.वा./१/३३/५/९५/२६ बुद्धयभिधानानुप्रवृत्तिलिङ्गं सादृश्यं स्वरूपानुगमो वा जाति:, सा चेतनाचेतनाद्यात्मिका शब्दप्रवृत्तिनिमित्तत्वेन प्रतिनियमात् स्वार्थव्यपदेशभाक् । =अनुगताकार बुद्धि और अनुगत शब्द प्रयोग का विषयभूत सादृश्य या स्वरूप जाति है। चेतन की जाति चेतनत्व और अचेतन की जाति अचेतनत्व है क्योंकि यह अपने-अपने प्रतिनियत पदार्थ के ही द्योतक हैं।
ध./१/१,१,१/१७/५ तत्थ जाई तब्भवसारिच्छ-लक्खण-सामण्णं।
ध./१/१,१,१/१८/३ तत्थ जाइणिमित्तं णाम गो-मणुस्स-घड-पड-त्थंभ-वेत्तादि। =तद्भव और सादृश्य लक्षण वाले सामान्य को जाति कहते हैं। गौ, मनुष्य, घट, पट, स्तम्भ और वेत इत्यादि जाति निमित्तक नाम है।
- <a name="2" id="2">जीवों की जातियों का निर्देश
ध./२/१,१/४१९/४ एइंदियादी पंच जादीओ, अदीदजादि विअत्थि। =एकेन्द्रियादि पाच जातिया होती हैं और अतीत जातिरूप स्थान भी है।
- चार उत्तम जातियों का निर्देश
म.पु./३९/१६८ जातिरैन्द्री भवेद्दिव्या चक्रिणां विजयाश्रिता। परमा जातिरार्हन्त्ये स्वात्मोत्था सिद्धिमीयुषाम् । =जाति चार प्रकार की हैं–दिव्या, विजयाश्रिता, परमा और स्वा। इन्द्र के दिव्या जाति होती हैं, चक्रवर्तियों के विजयाश्रिता, अर्हन्तदेव के परमा और मुक्त जीवों को स्वा जाति होती है।