Test5
From जैनकोष
एकेंद्रिय जीवों के 42 भेद हैं-
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, साधारण वनस्पति, और प्रत्येक वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति के दो भेद - सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित। इस तरह एकेंद्रिय जीवों के सात भेद हुए।
इन सात के सूक्ष्म व बादर की अपेक्षा 14 भेद हुए।
ऐसे 14 भेद में हर एक के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त, इस तरह 42 भेद हुए।
(जै.सि.प्र. 54-57) - देखें बृहत् जैन शब्दार्णव/ द्वि. खंड।
इन्द्रिय | एकेन्द्रिय | द्वीन्द्रिय | त्रीन्द्रिय | चतुरिन्द्रिय | असंज्ञी पन्चेन्द्रिय | संज्ञी पन्चेन्द्रिय |
---|---|---|---|---|---|---|
स्पर्शन | 400 धनुष | 800 धनुष | 1600 धनुष | 3200 धनुष | 6400 धनुष | 9 योजन |
रसना | -- | 64 धनुष | 128 धनुष | 256 धनुष | 512 धनुष | 9 योजन |
घ्राण | -- | -- | 100 धनुष | 200 धनुष | 400 धनुष | 9 योजन |
चक्षु | -- | -- | -- | 2954 योजन | 5908 योजन | 47262x7/20 योजन |
श्रोत्र | -- | -- | -- | -- | 8000 धनुष | 12 योजन |
मन | -- | -- | -- | -- | -- | सर्वलोकवर्ती |
राजवार्तिक हिंन्दी/फुट नोट - कुल सरसों का प्रमाण आठ सरसों = 1. यव; आठ यव = 1 अंगुल; 24 अंगुल = 1 हाथ; 4 हाथ = 1 धनुष; 2000 धनुष = 1 कोष; 4 कोस = 1 व्यवहार योजन; 500 व्यवहार योजन = 1 बड़ा योजन। अब 100,000 योजन विष्कंभ के 1000 योजन गहरे कुंड का घन प्रमाण = (50,000)2 * 22/7*1000 = 75*1013 योजन । 1 घन योजन में सरसों का प्रमाण = (8 * 8 * 24 * 4 * 2000 * 4 * 500)3* 75 *1013 = 19791209299968 X 10\31। कुंडके ऊपर शिखामें सरसों = 1799200844551636 - 36 36 36 33 36 36 36 36 36 36 36 36 36 4\11। प्रथम कुंडमें कुल सरसों = 1997112938451316 - 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 3.4\11 (45 अक्षर)। अंतिम कुंड में सरसों का प्रमाण 45 अक्षर X असंख्यात्।