दधिमुख
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
नंदीश्वर द्वीप में पूर्वादि चारों दिशाओं में स्थित चार-चार बावड़ियाँ हैं। प्रत्येक बावड़ी के मध्य में एक-एक ढोलाकार (Cylinderical) पर्वत है। धवलवर्ण होने के कारण इनका नाम दधिमुख है। इस प्रकार कुल 16 दधिमुख हैं। जिनमें से प्रत्येक के शीश पर एक-एक जिन मंदिर है। विशेष–देखें लोक - 4.5।
पुराणकोष से
(1) एक विद्याधर । इसने मदनवेगा का विवाह वसुदेव के साथ कराया था । हरिवंशपुराण 24.84
(2) वसुदेव का सारथी । इसने रोहिणी स्वयंवर के समय हुए युद्ध में वसुदेव का रथ-संचालन किया था । हरिवंशपुराण 31.67,103
(3) नंदीश्वर द्वीप की वापियों के मध्य में स्थित चार पर्वत । ये प्रत्येक दिशा की चारों वापियों के मध्य सफेद शिखरों से युक्त, स्वर्णमय एक-एक हजार योजन गहरे, दस-दस हजार योजन चौड़े, लंबे तथा ऊँचे ढोल जैसे आकार के सोलह होते हैं । हरिवंशपुराण 5.669-670 इन पर्वतों के शिखरों पर जिन-मंदिर हैं । ये मंदिर पूर्वाभिमुख, सौ योजन लंबे, पचास योजन चौड़े और पचहत्तर योजन ऊंचे है । हरिवंशपुराण 5.676-677
(4) एक द्वीप । पद्मपुराण - 51.1
(5) दधिमुख द्वीप का एक नगर । पद्मपुराण - 51.2