तम
From जैनकोष
स.सि./५/२४/२९६/८ तमो दृष्टिप्रतिबन्धकारणं प्रकाशविरोधि। =जिससे दृष्टि में प्रतिबन्ध होता और जो प्रकाश का विरोधी है वह तम कहलाता है। (रा.वा./५/२४/१५/४८९/७); (त.सा./३/६८/१६१); (द्र.सं./१६/५३/११)। रा.वा./५/२४/१/४८५/१४ पूर्वोपात्ताशुभकर्मोदयात् ताम्यति आत्मा, तभ्यतेऽनेन, तमनमात्रं वा तम:। पूर्वोपात्त अशुभकर्म के उदय से जो स्वरूप को अन्धकारवृत करता है या जिसके द्वारा किया जाता है, या तमन मात्र को तम कहते हैं।