विद्युत्प्रभ
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- एक गजदंत पर्वत–देखें लोक - 5.3।
- विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर–देखें विद्याधर ।
- विद्युत्प्रभ गजदंत का एक कूट–देखें लोक - 5.4।
- देवकुरु के 10 द्रहों में से एक–देखें लोक - 5.6।
- यदुवंशी अंधकवृष्णि के पुत्र हिमवान् का पुत्र तथा नेमिनाथ भगवान् का चचेरा भाई–देखें इतिहास - 10.10।
- महापुराण/76/श्लोक -पोदनपुर के राजा विद्युद्राज का पुत्र था। विद्युच्चर नाम का कुशल चोर बना। जंबूकुमार के घर चोरी करने गया।46-57। वहाँ दीक्षा को कटिबद्ध जंबूकुमार को अनेकों कथाएँ बताकर रोकने का प्रयत्न किया।58-107। पर स्वयं उनके उपदेशों से प्रभावित होकर उनके साथ ही दीक्षा धारण कर ली।108-110।
पुराणकोष से
(1) मेरु के दक्षिण-पश्चिम कोण में स्थित स्वर्णमय एक पर्वत । इसके नौ कूट हैं― 1. सिद्धकूट 2. विद्युत्प्रभकूट 3. देवकुरुकूट 4. पद्ममककूट 5. तपनकूट 6. स्वस्तिककूट 7. शतज्वलकूट 8. सीतोदाकूट और 9. हरिसहकूट । हरिवंशपुराण 5.212, 222-223
(2) इस नाम के पर्वत का दूसरा कूट । हरिवंशपुराण 5.222
(3) यदुवंशी राजा अंधकवृष्णि के पुत्र राजा हिमवान् का प्रथम पुत्र । माल्यवान् और गंधमादन इसके भाई थे । हरिवंशपुराण 48.47
(4) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित चौथा नगर । महापुराण 19.78, 87, हरिवंशपुराण 22.90
(5) हेमपुर नगर के राजा कनकद्युति का पुत्र । राजा महेंद्र ने अल्पायु जानकर इसे अपनी पुत्री अंजन को देने योग्य नहीं समझा था । पद्मपुराण 15. 85
(6) चक्रवर्ती भरतेश के कुंडल । महापुराण 37. 157
(7) जंबूद्वीप के प्रसिद्ध सोलह सरोवरों में ग्यारहवाँ सरोवर । महापुराण 63. 199
(8) चार गजदंत पर्वतों में तीसरा पर्वत । यह अनादिनिधन है । महापुराण 63. 205
(9) पोदनपुर नगर के राजा विद्युद्राज का पुत्र । इसका अपर नाम विद्युच्चोर था । महापुराण 76. 53-55 देखें विद्युच्चोर
(10) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में सुरेंद्रकांतार नगर के राजा मेघवाहन और रानी मेघमालिनी का पुत्र । यह ज्योतिर्माला का भाई था । दूसरे पूर्व भव में यह वत्सकावती देश में प्रभाकरी नगरी के राजा नंदन का पुत्र विजयभद्र और प्रथम पूर्व भव में माहेंद्र स्वर्ग के चक्रक विमान में देव था । महापुराण 62. 71-72, 75-78, पांडवपुराण 4. 29-35
(11) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में रथनूपुर नगर का नृप एक विद्याधर । इसके दो पुत्र थे― इंद्र और विद्युन्माली । इन पुत्रों में इंद्र को राज्य सौंपकर तथा विद्युन्माली को युवराज बनाकर यह दीक्षित हो गया था । पांडवपुराण 17. 43-45