पद
From जैनकोष
श्रुतज्ञान के बीस भेदों में पांचवां भेद। यह अर्थपद, प्रमाणपद और मध्यमपद के भेद से तीन प्रकार का होता है। इनमें एक, दो, तीन, चार, पाँच और छह व सात अक्षर तक का पद अर्थपद कहलाता है। आठ अक्षर रूप प्रमाण पद होता है और मध्यम पद में सोलह सौ चौंतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठसौ अठासी (१६,३४,८३,०७,८८८) अक्षर होते हैं; और अंग तथा पूर्वों के पद की संख्या इसी मध्यम पद से होती है। हरिवंशपुराण 10.12-13, 22-25