पूर्णभद्र
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- यक्ष जाति के व्यंतर देवों का एक भेद - देखें यक्ष ;
- इन यक्ष जाति के देवों ने बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करते समय रावण की रक्षा की थी।
- हरिवंशपुराण /43/149-158 ये अयोध्या नगरी के समुद्रदत्त सेठ के पुत्र थे। अणुव्रत धारण कर सौधर्मस्वर्ग में उत्पन्न हुए । यह कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्नकुमार का पूर्व का पाँचवाँ भव है। - देखें प्रद्युम्न ।
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पुराणकोष से
(1) साकेतपुर निवासी अर्हद्दास श्रेष्ठी का ज्येष्ठ पुत्र मणिभद्र इसका छोटा भाई था । इसने श्रावक की सातवीं प्रतिमा धारण की थी इसके प्रभाव से यह मरकर सौधर्म स्वर्ग में सामानिक देव हुआ । सौधर्म स्वर्ग से च्युत होकर यह साकेत नगरी के राजा हेमनाभ का मधु नामक पुत्र हुआ था । महापुराण 72.36-37, महापुराण 109.131-132
(2) एक यक्ष । इसने बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि के समय रावण की रक्षा की थी । पद्मपुराण 70.68-95
(3) कुबेर का साथी एक यक्ष । द्वारिका के निर्माण के पश्चात् कुबेर के चले जाने पर उसकी आज्ञा से वहाँ बचे हुए कार्य को इसने संपन्न किया था । हरिवंशपुराण 41.40
(4) विजयार्द्ध की दक्षिण और उत्तर श्रेणी से पंद्रह योजन ऊपर स्थित एक पर्वत-श्रेणी यह दस योजन चौड़ी है । विजयार्ध देव इसका स्वामी है । हरिवंशपुराण 5.24-25
(5) ऐरावत क्षेत्र के विजयार्ध पर्वत का चतुर्थ कूट । हरिवंशपुराण 5. 26, 109-112
(6) माल्यवान् पर्वत का एक कूट । हरिवंशपुराण 5.219-220
(7) किन्नर आदि अष्टविध जातियों के व्यंतर देवों में यक्ष गतियों के न्यंतरों का इंद्र । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59-63
(8) अयोध्या के समुद्रदत्त सेठ का पुत्र । यह अपने पूर्वभव में अग्निभूति था । हरिवंशपुराण 43.148-149