अनंतानंत
From जैनकोष
राजवार्तिक अध्याय 3/38,5/207/16
यज्जघंययुक्तानंतं तद्विरलीकृत्यात्रैकैकरूपे जघंययुक्तानंतं दत्वा सकृद्वर्गितमुत्कृष्टयुक्तानंतमतीत्य जघंयानंतानंतं गत्वा पतितम्। ...यज्जघंयानंतानंतं तद्विरलीकृत्य पूर्ववत्त्रीन्वारान् वर्गितसंवर्गितमुत्कृष्टानंतानंतं न प्राप्नोति, ततः सिद्धनिगोतजीववनस्पतिकायातीतानागतकालसमय सर्वपुद्गलसर्वाकाशप्रदेशधर्माधर्मास्तिकायागुरुलघुगुणानंतां प्रक्षिप्य प्रक्षिप्य त्रीन् वारान् वर्गितसंवर्गिते कृते उत्कृष्टानंतानंतं न प्राप्नोति ततोऽनंते केवलज्ञाने दर्शने च प्रक्षिप्ते उत्कृष्टानंतानंतं भवति। तत् एकरूपेऽपनोतेऽजघंयोत्कृष्टानंतानंतं भवति।
= जघन्य युक्तानंत को विरलन कर प्रत्येक पर जघन्य युक्तानंत को रख उन्हें परस्पर वर्ग (जघन्य युक्तानंत) करने पर अर्थात् (जघन्य युक्तानंत) उत्कृष्ट युक्तानंत से आगे जघन्य अनंतानंत में जाकर प्राप्त होता है.... इस जघन्य अनंतानंत को पूर्ववत् विरलीकृत कर तीन बार वर्गित संवर्गित करने पर उत्कृष्ट अनंतानंत प्राप्त नहीं होता है। उसमें सिद्ध जीव, निगोद जीव, वनस्पति काय वाले जीव, अतीत व अनागत कालके समय, सर्व पुद्गल, सर्व आकाश प्रदेश, धर्म व अधर्मास्तिकाय द्रव्यों के अगुरुलघु गुणों के अनंत अविभाग प्रतिच्छेद जोड़े। फिर तीन बार वर्गित संवर्गित करें। तब भी उत्कृष्ट अनंतानंत नहीं होता है। अतः उसमें केवलज्ञान व केवलदर्शन को (अर्थात् इनके सर्व अविभागी प्रतिच्छेदों को) जोड़ें, तब उत्कृष्ट अनंतानंत होता है। उसमें से एक कम करने पर अजघन्योत्कृष्ट या मध्यम अनंतानंत होता है।
- विस्तार के लिये देखें अनंत ।