अनारंभ
From जैनकोष
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 239
निःक्रियनिजशुद्धात्मद्रव्ये स्थित्वा मनोवचनकायव्यापारनिवृत्तिरनारंभः।
= निष्क्रिय जो निज शुद्धात्म द्रव्य, उसमें स्थित होने के कारण मन वचन काय के व्यापार से निवृत्त हो जाना अनारंभ है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 239
निःक्रियनिजशुद्धात्मद्रव्ये स्थित्वा मनोवचनकायव्यापारनिवृत्तिरनारंभः।
= निष्क्रिय जो निज शुद्धात्म द्रव्य, उसमें स्थित होने के कारण मन वचन काय के व्यापार से निवृत्त हो जाना अनारंभ है।