उपनय
From जैनकोष
न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 1/1/38
उदाहरणापेक्षस्तथेत्युपसंहारो न तथेति वा साध्यस्योपनयः ।38।
= उदाहरण की अपेक्षा करके 'तथा इति' अर्थात् जैसा उदाहरण है वैसा ही यह भी है, इस प्रकार उपसंहार करना उपनय है। अथवा यदि उदाहरण व्यतिरेकी है तो-जैसे इस उदाहरण में नहीं है उसी प्रकार यह भी नहीं है, इस प्रकार उपसंहार करना उपनय है। तात्पर्य यह कि जहाँ वैधर्म्य का दृष्टांत होगा वहां `न तथा' ऐसा उपनय होगा और जहाँ साधर्म्य का उदाहरण होगा वहाँ तथा' ऐसा उपनय होगा।
न्यायदर्शन सूत्र/ भाषा 1/1/38/38
साधनभूतस्य धर्मस्य साध्येन धर्मेण सामानाधिकारण्योपपादनमुपनयार्थः।
= साधनभूत का साध्य धर्म के साथ समान अधिकरण एक आश्रयपना होने का प्रतिपादन करना उपनय है।
परीक्षामुख परिच्छेद 3/50
हेतोरुपसंहार उपनयः ।50।
= व्याप्तिपूर्वक धर्मी में हेतु की निस्संशय मौजूदगी बतलाना उपनय है यथा (उसी प्रकार यह भी धूमवान् है) ऐसा कहना।
न्यायदीपिका अधिकार 3/$32,72
दृष्टांतापेक्षया, पक्षे हेतोरुपसंहारवचनमुपनयः। तथा चायं धूमवानिति ।32। साधनवत्तया पक्षस्य दृष्टांतसाम्यकथनमुपनयः। यथा चायं धूमवानिति ।72।
= दृष्टांत की अपेक्षा लेकर पक्ष में हेतु के दोहराने को उपनय कहते हैं। जैसे-`इसलिए यह पर्वत भी धूमवाला है' ऐसा कहना-अथवा साधनवान रूप से पक्ष की दृष्टांत के साथ साम्यता का कथन करना उपनय है। जैसे इसीलिए यह धूम वाला है।
• उपनय नामक नय - देखें नय - V.4।