द्वैपायन
From जैनकोष
(ह.पु./६१/श्लो.) रोहिणी का भाई बलदेव का मामा भगवान् से यह सुनकर कि उसके द्वारा द्वारिका जलेगी; तो वह विरक्त होकर मुनि हो गया (२८)। कठिन तपश्चरण के द्वारा तैजस ऋद्धि प्राप्त हो गयी, तब भ्रान्तिवश बारह वर्ष से कुछ पहले ही द्वारिका देखने के लिए आये (४४)। मदिरा पीने के द्वारा उन्मत्त हुए कृष्ण के भाइयों ने उसको अपशब्द कहे तथा उस पर पत्थर मारे (५५)। जिसके कारण उसे क्रोध आ गया और तैजस समुद्घात द्वारा द्वारिका को भस्म कर दिया। बड़ी अनुनय और विनय करने के पश्चात् केवल कृष्ण व बलदेव दो ही बचने पाये (५६-८६)। यह भाविकाल की चौबीसी में स्वयम्भू नाम के १९ वें तीर्थंकर होंगे।– देखें - तीर्थंकर / ५ ।
- द्वैपायन के उत्तरभव सम्बन्धी
ह.पु./६१/६९ मृत्वा क्रोधाग्निर्दग्धतप: सारधनश्च स:। बभूवाग्निकुमाराख्यो मिथ्यादृग्भवनामर:।६९। =क्रोधरूपी अग्नि के द्वारा जिनका तपरूप श्रेष्ठ धन भस्म हो चुका था ऐसे द्वैपायन मुनि मरकर अग्निकुमार नामक मिथ्यादृष्टि भवनवासी देव हुए। (ध.१२/४,२,७,१९/२१/४)