अयशःकीर्ति
From जैनकोष
II.यशःकीर्ति
सर्वार्थसिद्धि/8/11/392/6 पुण्यगुणख्यापनकारणं यशःकीर्तिनाम। तत्प्रत्यनीकफलमयशःकीर्तिनाम। = पुण्य गुणों की प्रसिद्धि का कारण यशःकीर्ति नामकर्म है। इससे विपरीत फलवाला अयशःकीर्ति नामकर्म है। ( राजवार्तिक/8/11-12/579/32 ); ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/30/16 )।
धवला 6/1, 9-1, 28/66/1 जस्स कम्मस्स उदएण संताणमसंताणं वा गुणाणमुव्भावणं लोगेहि कीरदि, तस्स कम्मस्स जसकित्तिसण्णा। जस्स कम्मस्सोदएण संताणमसंताणं वा अवगुणाणं उब्भावणं जणेण कीरदे, तस्स कम्मस्स अजसैकित्तिसण्णा। = जिस कर्म के उदय से विद्यमान या अविद्यमान गुणों का उद्भावन लोगों के द्वारा किया जाता है, उस कर्म की ‘यशःकीर्ति’ यह संज्ञा है। जिस कर्म के उदय से विद्यमान अवगुणों का उद्भावन लोक द्वारा किया जाता है, उस कर्म की ‘अयशःकीर्ति’ यह संज्ञा है। ( धवला 13/5, 5, 101/356/5 )।