अशुद्धोपयोग
From जैनकोष
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 156 उपयोगो हि जीवस्य परद्रव्यकारणमशुद्धः। स तु विशुद्धिसंक्लेशरूपोपरागवशात् शुभाशुभेनोपात्तद्वैविध्यः।
= जीव का परद्रव्य के संयोग का कारण अशुद्ध उपयोग है। और वह विशुद्धि तथा संक्लेश रूप उपराग के कारण शुभ और अशुभ रूप से द्विविधता को प्राप्त होता है।
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