शब्दाकुलित आलोचना
From जैनकोष
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 562 आकंपिय अणुमाणिय जं दिट्ठं बादर च सुहुमं च। छण्णं सद्दाउलयं बहुजण अव्वत्त तस्सेवी।
= आलोचना के दश दोष हैं - आकंपित, अनुमानित, यद्दृष्ट, स्थूल, सूक्ष्म, छन्न, शब्दाकुलित, बहुजन, अव्यक्त और तत्सेवी।
( मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 1030), ( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/22/440/4), ( चारित्रसार पृष्ठ 138/2)
- भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा
पक्खियचडमासिय संवच्छरिएसु सोधिकालेसु। बहु जण सद्दाउलए कहेदि दोसो जहिच्छाए ॥590॥ इय अव्वत्तं जइ सावेंतो दोसो कहेइ सगुरुणं। आलोचणाए दोसो सत्तमओ सो गुरुसयासे ॥591॥
शब्दाकुलित अथवा बहुजन - पाक्षिक दोषों की आलोचना, चातुर्मासिक दोषों की आलोचना और वार्षिक दोषों की आलोचना, सब यति समुदाय मिलकर जब करते हैं तब अपने दोष स्वेच्छा से कहना यह बहुजन नाम का दोष है। यदि अस्पष्ट रीति से गुरु को सुनाता हुआ अपने दोष मुनि कहेगा तो गुरु के चरण सान्निध्य में उसने सातवाँ शब्दाकुलिक दोष किया है। ऐसा समझना ॥590-591॥
अधिक जानकारी के लिए देखे आलोचना ।