अपादान कारक
From जैनकोष
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 16 शुद्धानंतशक्तिज्ञानविपरिणमनस्वभावसमये पूर्वप्रवृत्तविकलज्ञानस्वभावापगमेऽपि सहजज्ञानस्वभावेनध्रुवत्वालंबनादपादानत्वमुपाददानः।
= शुद्धानंत शक्तिमय ज्ञानरूप से परिणमित होने के समय पूर्व में प्रवर्तमान विकलज्ञानस्वभाव का नाश होने पर भी सहज ज्ञानस्वभाव से स्वयं ही ध्रुवता का अवलंबन करने से (आत्मा) अपादानता को धारण करता है।