अष्ट प्रवचन माता
From जैनकोष
मू.आ. 297 प्रणिधाणजोगजुत्तो पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु । स चरित्ताचारो अट्ठविधो होइ णायव्वो ।297। = आठ प्रवचन माता से आठ भेद चारित्र के होते हैं - परिणाम के संयोग से पाँच समिति, तीन गुप्तियों में न्यायरूप प्रवृत्ति वह आठ भेद वाला चारित्राचार है ऐसा जानना ।297।
भगवती आराधना/1205 एदाओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरित्तं । रक्खंति सदा सुणिओ मादा पुत्तं व पयदाओ ।1205। = ये अष्ट प्रवचनमाता मुनि के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की सदा ऐसे रक्षा करती हैं जैसे कि पुत्र का हित करने में सावधान माता अपायों से उसको बचाती है ।1205। (मू.आ./336) ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1185/1171/5 ) ।
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