शिरोन्नति
From जैनकोष
अनगारधर्मामृत/8/90/817 प्रत्यावर्तत्रयं भक्त्या नन्नमत् क्रियते शिर:। यत्पाणिकुड्मलांकं तत् क्रियायां स्याच्चतु:शिर:।=
प्रकृत में शिर या शिरोनति शब्द का अर्थ भक्ति पूर्वक मुकुलित हुए दोनों हाथों से संयुक्त मस्तक का तीन-तीन आवर्तों के अनंतर नम्रीभूत होना समझना चाहिए।अधिक जानकारी के लिए देखें नमस्कार ।