मित्रश्री
From जैनकोष
भरतक्षेत्र के अग्र देश की चंपा नगरी के ब्राह्मण अग्निभूति और उसकी स्त्री अग्निलता की दूसरी पुत्री । यह धनश्री की छोटी बहिन तथा नागश्री की बडी बहिन थी । ये तीनों बहिनें अपने फुफेरे भाई सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति से विवाही गयी थी । अपनी छोटी बहिन नागश्री द्वारा धर्मरुचि मुनिराज को विषमिश्रित आहार दिये जाने से यह और इसकी बढ़ी बहिन धनश्री तथा सोमदत्त आदि तीनों भाई दीक्षित हो गये थे । दर्शन आदि आराधनाओं की आराधना करते हुए मरकर ये पांचों जीव अच्युत स्वर्ग में सामानिक देव हुए । यह यहाँ से चयकर पांडुपुत्र सहदेव हुई थी । महापुराण 72. 227-237, 261, पांडवपुराण 23.81-82, 24.77