चारित्र शुद्धि
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/167/380/1 काले पठनमित्यादिका ज्ञानशुद्धि:, अस्यां सत्यां अकालपठनाद्या: क्रिया ज्ञानावरणमूला: परित्यक्ता भवंति। पंचविंशति भावनाश्चारित्रशुद्धि: सत्यां तस्यां अनिगृहीतमन:प्रचारादिशुभपरिणामोऽभ्यंतरपरिग्रहस्त्यक्तो भवति।...मनसावद्ययोगनिवृत्ति: जिनगुणानुराग: वंद्यमानश्रुतादिगुणानुवृत्ति: कृतापराधविषया निंदा, मनसा प्रत्याख्यानं, शरीरासारानुपकारित्वभावना, चेत्यावश्यकशुद्धिरस्यां सत्यां अशुभयोगो जिनगुणाननुराग: श्रुतादिमाहात्म्येऽनादर:, अपराधाजुप्सा, अप्रत्याख्यानं शरीरममता चेत्यमी दोषा परिग्रहनिराकृता भवंति। = .......चारित्रशुद्धि-प्रत्येक व्रत की पाँच-पाँच भावनाएँ हैं, पाँच व्रतों की पच्चीस भावनाएँ हैं इनका पालन करना यह चारित्रशुद्धि है। इन भावनाओं का त्याग होने से मन स्वच्छंदी होकर अशुभ परिणाम होते हैं। ये परिणाम अभ्यंतर परिग्रह रूप हैं। व्रतों की पाँच भावनाओं से अभ्यंतर परिग्रहों का त्याग होता है। .......
देखें शुद्धि ।
पुराणकोष से
एक व्रत । इसमें तेरह प्रकार के चारित्र की शुद्धि के किए निम्न प्रकार से उपवास करने की व्यवस्था है― अहिंसा महाव्रत—126 उपवास, सत्य महाव्रत 72 उपवास, अचौर्य महाव्रत 72 उपवास, ब्रह्मचर्य महाव्रत 180 उपवास, अपरिग्रह महाव्रत 216 उपवास, रात्रिभोजन त्याग 10 उपवास, गुप्ति महाव्रत 27 उपवास, समिति महाव्रत 531 उपवास, इस प्रकार इस व्रत ने 1234 उपवास और उतनी ही पारणाएं की जाती है । हरिवंशपुराण 34.100-109