आलोपन
From जैनकोष
षट्खंडागम 14/5, 6/सूत्र 41-63/38-46 जो सो आलावणबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो - सेसगहाणं वा जावाणं वा जुगाणं वा गड्डीणं वा गिल्लीणं वा रहाणं वा संदणाणं वा सिवियाणं वा गिहाणं वा पासादाणं वा गोवुराणं वा तोरणाणं वा से कट्ठेण वा लोहेण या रज्जुणा वा वब्भेण वा दब्भेण वा जे चामण्णे एवमादिया अण्णदव्वाणमण्णदव्वेहि आलावियाणं बंधो होदि सो सव्वो आलावणबंधो णाम ।41। जो सो अल्लीवणबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो - से कडयाणं वा कुड्डाणं वा गोवरपीडाणं वा पागाराणं वा साडियाणं वा जे चामण्णे एवमादिया अण्णदव्वाणमण्णदव्वेहि अल्लीविदाणं बंधो होदि सो सव्वो अल्लोवणबंधोणाम ।42। जो सो संसिलेसबंधो णाम तस्स इमोणिद्देसो-जहा कट्ठ-जदणं अण्णोण्णसं सिलेसिदाणं बंधो संभवदि सो सव्वो संसिलेसबंधो णाम ।43। जो सो सरीरबंधो णाम सो पंचविहो - ओरालियसरीरबंधो वेउव्वियसरीरबंधो आहारसरीरबंधो तेयासरीरबंधो कम्मइयसरीरबंधोचेदि ।44। ओरालिय-ओरालिय- सरीरबंधो ।45। ओरालिय-तेयासरीरबंधो ।46। ओरालिय-कम्मइय- सरीरबंधो ।47। ओरालिय-तेयाकंभइयसरीरबंधो । 48। वेउव्विय-वेउव्वियसरीरबंधो ।49। वेउव्विय-तेयासरीरबंधो ।50। वेउव्विय-कम्मइयसरीरबंधो ।51। वेउव्विय-तेया-कम्मइयसरीरबंधो ।52। आहार-आहारसरीरबंधो ।53। आहार-तेयासरीरबंधो ।54 । आहार- कम्मइयसरीरबंधो ।55। आहार-तेया-कम्मइयसरीरबंधो ।56। तेयातेयासरीरबंधो ।57। तेया-कम्मइयसरीरबंधो ।58। कम्मइय-कम्मइय- सरीरबंधो ।59। सो सव्वो सरीरबंधो णाम ।60। जो सो सरीरिबंधो णामसो दुविहो-सादियसरीरिबंधो चेव अणादियसरीरबंधो चेव ।61। जो सो सादियसरीरिबंधो णाम सो जहा सरीरबंधो तहा णेदव्वो ।62। जो अणादियसरीरिबंधो णामयथा अट्ठण्णं जीवमज्झपदेसाणं अण्णोण्णपदेसबंधो भवदि सो सव्वो अणादियसरीरिबंधो णाम ।63। (इतरेषां प्रदेशानां कर्मनिमित्तसंहरणविसर्पणस्वभावत्वादादिमान् । राजवार्तिक ) । =
- जो आलापनबंध है उसका यह निर्देश है - जो शकटों का, यानों का, युगों का, गड्डियों का, गिल्लियों का, रथों का, स्यंदनों का, शिविकाओं, गृहों, प्रासादों, गोपुरों और तोरणों का काष्ट से, लोह, रस्सी, चमड़े की रस्सी और दर्भ से जो बंध होता है तथा इनसे लेकर अन्य द्रव्यों से लालापित अन्य द्रव्यों का जो बंध होता है वह सब आलापनबंध है ।41।
- जो अल्लीवणबंध है उसका यह निर्देश है - कटकों का, कुंडों, गोबरपीड़ों, प्राकारों और शाटिकाओं का तथा इनसे लेकर और जो दूसरे पदार्थ हैं उनका जो बंध होता है अर्थात् अन्य 4द्रव्यद से संबंध को प्राप्त हुए अन्य का जो बंध होता है वह सब अल्लीवणबंध है ।42।
- जो संश्लेषबंध है उसका यह निर्देश है - जैसे परस्पर संश्लेष को प्राप्त हुए काष्ठ और लाख का बंध होता है वह सब संश्लेषबंध है । 43। - विशेष देखें श्लेष ।
- जो शरीरबंध है वह पाँच प्रकार का है - औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीरबंध ।44। औदारिक - औदारिक शरीरबंध ।45। औदारिक-तैजसशरीरबंध ।46। औदारिक-कार्मण शरीरबंध ।47. औदारिक-तैजस-कार्मण शरीरबंध।48। वैक्रियिक-वैक्रियिक शरीरबंध ।49। वैक्रियिक-तैजस शरीरबंध ।50। वैक्रियिक-कार्मण शरीरबंध ।51। वैक्रियिक-तैजस-कार्मण शरीरबंध ।52। आहारक-आहारक शरीरबंध ।53। आहारकतैजस शरीरबंध ।54। आहारक-कार्मण शरीरबंध ।55। आहारक-तैजस-कार्मण शरीरबंध ।56। तैजस-तैजस शरीरबंध ।57। तैजस-कार्मण शरीरबंध ।58। कार्मण-कार्मण शरीरबंध ।59। वह सब शरीरबंध है ।60।
- जो शरीरिबंध है वह दो प्रकार का है - सादि शरीरिबंध और अनादि शरीरिबंध ।62। जो सादि शरीरिबंध है - वह शरीरबंध के समान जानना चाहिए ।62। जो अनादि शरीरिबंध है । यथा - जीव के आठ मध्यप्रदेशों का परस्पर प्रदेश-बंध होता है यह सब अनादि शरीरिबंध है ।63। (जीव के इतर प्रदेशों का बंध सादि शरीरिबंद है) ( राजवार्तिक/5/24/9/488/36 ) ।
देखें बंध - 1.4।