मित्रननंदी
From जैनकोष
बलभद्र धर्म के पूर्वभव का जीव । यह भरतक्षेत्र में पश्चिम विदेहक्षेत्र का राजा था । इसे शत्रु और मित्र समान थे । इसने जिनेंद्र सुव्रत से धर्म का स्वरूप सुनकर संयम धारण कर लिया था । अंत में यह समाधिपूर्वक देह त्याग कर अनुत्तर विमान में तैंतीस सागर की आयु का धारी अहमिंद्र हुआ और स्वर्ग से चयकर बलभद्र धर्म हुआ । महापुराण 59.63-71