आस्रवानुप्रेक्षा
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
देखें अनुप्रेक्षा 1.7
पुराणकोष से
बारह अनुप्रेक्षाओं में सातवीं अनुप्रेक्षा । राग आदि भावों के द्वारा पुद्गल पिंड कर्मरूप होकर आते और दुःख देते हैं । इसी से जीव अनंत संसार-सागर में डूबता है । पाँच प्रकार का मिथ्यात्व, बारह अविरति, पंद्रह प्रमाद और पच्चीस कषाय इस प्रकार कुछ सत्तावन कर्मास्रव के कारण होते हैं । दर्शन, ज्ञान, चारित्र से इस आस्रव को रोका जा सकता है । पद्मपुराण 14.238-239, पांडवपुराण 25.99-101 वीरवर्द्धमान चरित्र 11.64-73 देखें अनुप्रेक्षा ।