उच्चकुल
From जैनकोष
मोक्षमार्ग प्रकाशक/6/258/2
कुल की उच्चता तो धर्म साधनतैं है । जो उच्चकुल विषै उपजि हीन आचरन करै, तौ वाकौ उच्च कैसे मानिये ।.....धर्म पद्धतिविषै कुल अपेक्षा महंतपना नाहीं संभवै है ।
गोम्मटसार कर्मकांड/13/9
उच्चं णीचं चरणं उच्चं णीचं हवे गोदं ।13।
= जहाँ ऊँचा आचरण होता है वहाँ उच्चगोत्र और जहाँ नीचा आचरण होता है वहाँ नीचगोत्र होता है ।
देखें वर्णव्यवस्था_निर्देश- 3.1।