आशा
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
1. (भगवती आराधना आ./1181/1167/16) चिरमेते ईदृशा विषया ममोदितोदिता भूयासुरित्याशंसा । तृष्णां इमे मनागपि मत्तो मा विच्छिद्यांतां इति तीव्रं प्रबंधप्रवृत्त्यभिलाषम् । = चिरकाल तक मेरे को सुख देने वाले विषय उत्तरोत्तर अधिक प्रमाण से मिलें ऐसी इच्छा करना उसको आशा कहते हैं । ये सुखदायक पदार्थ कभी भी मेरे से अलग न होवें ऐसी तीव्र अभिलाषा को तृष्णा कहते हैं । अधिक जानकारी के लिए देखें राग 2.6 , अभिलाषा ;
2. रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी - देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) रुचकगिरि के उत्तरदिशावर्ती आठ कूटों मे पांचवें रजतकूट की निवासिनी देवी । (हरिवंशपुराण 5.716)
(2) दिशा का पर्यायवाची शब्द । (हरिवंशपुराण 3.27)