आहारदान
From जैनकोष
हिंसा आदि दोषों तथा आरंभों से दूर रहने वाले मुनियों आदि पात्रों को उनकी शरीर की स्थिति के लिए विधिपूर्वक आहार देना । इसका शुभारंभ राजा श्रेयांस ने किया था । यह दान देने और लेने वाले दोनों को ही परंपरया कर्म-निर्जरा एव साक्षात् पुण्यास्रव का कारण है । महापुराण 20.99, 123, 56.71-73, 433, पद्मपुराण 32.154