अनक्षरात्मक शब्द
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/5/24/294-295/12 शब्दो द्विविधो भाषालक्षणो विपरीतश्चेति।...अभाषात्मनो द्विविध: प्रायोगिकी वैस्रसिकश्चेति। प्रायोगिकश्चतुर्धा ततविततघनसौषिरभेदात् । = भाषारूप शब्द और अभाषारूप शब्द इस प्रकार शब्दों के दो भेद हैं।...अभाषात्मक शब्द दो प्रकार के हैं-प्रायोगिक और वैस्रसिक।...तथा तत, वितत, घन और सौषिर के भेद से प्रायोगिक शब्द चार प्रकार है।
धवला 13/5,5,26/221/6 छव्विहो तद-विदद-घण-सुसिर-घोस-भास भेएण। = वह छह प्रकार है-तत, वितत, घन, सुषिर, घोष और भाषा।
सर्वार्थसिद्धि/5/24/295/3 वैस्रसिको वलाहकादिप्रभव: तत्र चर्मतनननिमित्त: पुष्करभेरीदर्दुरादिप्रभवस्तत:। तंत्रीकृतवीणासुघोषादिसमुद्भवो वितत:। तालघंटालालानाद्यभिघातजो घन:। वंशशंखादिनिमित्त: सौषिर:। = मेघ आदि के निमित्त से जो शब्द उत्पन्न होते हैं वे वैस्रसिक शब्द हैं। चमड़े से मढ़े हुए पुष्कर, भेरी और दर्दुर से जो शब्द उत्पन्न होता है वह तत शब्द है। ताँत वाले वीणा और सुघोष आदि से जो शब्द उत्पन्न होता है वह वितत है। ताल, घंटा और लालन आदि के ताड़न से जो शब्द उत्पन्न होता है वह घन शब्द है तथा बांसुरी और शंख आदि के फूँकने से जो शब्द उत्पन्न होता है वह सौषिर शब्द है। ( राजवार्तिक/5/24/4-5/485/27 )।
धवला 13/5,5,26/221/7 तत्थ तदो णाम वीणा-तिसरिआलावणि-वव्वीस-खुक्खुणादिजणिदो। वितदो णाम भेरी-मुदिंगपटहादिसमुब्भूदो। घणो णाम जयघंटादिघणदव्वाणं संघादुट्ठाविदो। सुसिरो णाम वंस-संख-काहलादिजणिदो। घोसो णाम घस्समाण-दव्वजणिदो। = वीणा, त्रिसरिक, आलापिनी, वव्वीसक और खुक्खुण आदि से उत्पन्न हुआ शब्द तत है। भेरी, मृदंग और पटह आदि से उत्पन्न हुआ शब्द वितत है। जय घंटा आदि ठोस द्रव्यो के अभिघात से उत्पन्न हुआ शब्द घन है। वंश, शंख और काहल आदि से उत्पन्न हुआ शब्द सौषिर है। घर्षण को प्राप्त हुए द्रव्य से उत्पन्न हुआ शब्द घोष है।
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/79/135/9 ततं वीणादिकं ज्ञेयं विततं पटहादिकं। घनं तु कंसतालादि सुषिरं वंशादिकं विदु:। वैस्रसिकस्तु मेघादिप्रभव:। = वीणादि के शब्द को तत, ढोल आदि के शब्द को वितत, मंजीरे तथा ताल आदि के शब्द को घन और बंसी आदि के शब्द को सुषिर कहते हैं। स्वभाव के उत्पन्न होने वाला वैस्रसिक शब्द बादल आदि से होता है। ( द्रव्यसंग्रह टीका/16/52/6 )।
- देखें शब्द ।