अनुक्त
From जैनकोष
राजवार्तिक/1/16/16/64/5 प्रकृष्टविशुद्धिश्रोत्रेंद्रियादिपरिणामकारणत्वात्। एकवर्णानिर्गमेऽपि अभिप्रायेणैव अनुच्चारितं शब्दमवगृह्णाति ‘इमं भवान् शब्दं वक्ष्यति’ इति। अथवा, स्वरसंचारणात् प्राक्तंत्रीद्रव्यातोद्याद्यामर्शनेनैव अवादिम्। अनुक्तमेव शब्दमभिप्रायेणावगृह्य आचष्टे ‘भवानिमं शब्दं वादयिष्यति’ इति। उक्तं प्रतीतम्। = श्रोत्रेंद्रिय के प्रकृष्ट क्षयोपशम के कारण एक भी शब्द का उच्चारण किये बिना अभिप्राय मात्र से अनुक्त शब्द को जान लेता है, कि आप यह कहने वाले हैं। अथवा वीणा आदि के तारों को सम्हालते समय ही यह जान लेना कि ‘इसके द्वारा यह राग बजाया जायेगा’ अनुक्त ज्ञान है। उक्त अर्थात् कहे गये शब्द को जानना। (इसी प्रकार अन्य इंद्रियों में भी लागू करना)।
धवला 6/1,9-1,14/20/6 णियमियगुणविसिट्ठअत्थग्गहणं उत्तावग्गहो। जधा चक्खिंदिएण धवलत्थग्गहणं, घाणिंदिएण सुअंधदव्वग्गहणमिच्चादि। अणियमियगुणविसिट्ठदव्वग्गहणमउत्तावग्गहो, जहा चक्खिंदिएण गुडादीणं रसस्सग्गहणं, घाणिंदिएण दहियादीणं रसग्गहणमिच्चादि। = नियमित गुणविशिष्ट अर्थ का ग्रहण करना उक्त अवग्रह है। जैसे–चक्षुरिंद्रिय के द्वारा धवल अर्थ का ग्रहण करना और घ्राण इंद्रिय के द्वारा सुगंध द्रव्य का ग्रहण करना इत्यादि। अनियमित गुणविशिष्ट द्रव्य का ग्रहण करना अनुक्त अवग्रह है। जैसे चक्षुरिंद्रिय के द्वारा रूप देखकर गुड़ आदि के रस का ग्रहण करना अथवा घ्राणेंद्रिय के द्वारा दही के गंध के ग्रहणकाल में ही उसके रस का ग्रहण करना। ( धवला 1/1,1,115/357/5 ); ( धवला 9/4,1,45/153/9 ); ( धवला 13/5,5,35/238/12 )।
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