आकाशगामी ऋद्धि
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०३३-१०३४
.....। अट्ठीओ आसीणो काउसग्गेण इदरेण ।१०३३। गच्छेदि जीए एसा रिद्धी गयणगामिणी णाम ।१०३४।
= जिस ऋद्धि के द्वारा कायोत्सर्ग अथवा अन्य प्रकार से ऊर्ध्व स्थित होकर या बैठकर जाता है वह आकाशगामिनी नामक ऋद्धि है।
राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०२/३१
पर्यङ्कावस्था निषण्णा वा कायोत्सर्ग शरीरा वा पादोद्धारनिक्षेपणविधिमन्तरेण आकाशगमनकुशला आकाशगामिनः।"
= पर्यङ्कासन से बैठकर अथवा अन्य किसी आसन से बैठकर या कायोत्सर्ग शरीर से [पैरों को उठाकर रखकर (धवला)] तथा बिना पैरों को उठाये रखे आकाश में गमन करने में जो कुशल होते हैं, वे आकाशगामी हैं।
(धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/८०/५); (चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१८/४)।
धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१९/८४/५
आगासे जहिच्छाए गच्छंता इच्छिदपदेसं माणुसुत्तरं पव्वयावरुद्धं आगासगामिणो त्ति घेतव्वो। देवविज्जाहरणं णग्गहणं जिणसद्दणुउत्तीदो।
= आकाश में इच्छानुसार मानुषोत्तर पर्वत से घिरे हुए इच्छित प्रदेशों में गमन करने वाले आकाशगामी हैं, ऐसा ग्रहण करना चाहिए। यहाँ देव व विद्याधरों का ग्रहण नहीं है, क्योंकि `जिन' शब्द की अनुवृत्ति है।
धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/८०/२
चउहि अंगुलेहिंतो अहियपमाणेण भूमीदो उवरि आयासे गच्छंतो आगासचारणं णाम।
= चार अंगुल से अधिक प्रमाण में भूमि से ऊपर आकाश में गमन करने वाले ऋषि आकाशचारण कहे जाते हैं।
धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१९/८४/६
"आगासचारणाणमागासगामीणं च को विसेसो। उच्चदे-चरणं चारित्तं संजमो पावकिरियाणिरोहो त्ति एयट्ठो, तह्मि कुसलो णिउणो चारणो। तवविसेसेण जणिदआगासट्ठियजीव(-वध) परिहरणकुसलत्तणेण सहिदो आगासचारणो। आगासगमणमेत्तजुत्तो आगासगामी। आगासगामित्तादो जीववधपरिहरणकुसलत्तणेण विसेसिदआगासगामित्तस्स विसेसुवलंभादो अत्थि विसेसो।
= प्रश्न-आकाशचारण और आकाशगामी के क्या भेद हैं? उत्तर-चरण, चारित्र, संयम व पापक्रिया निरोध, इनका एक ही अर्थ है। इसमें जो कुशल अर्थात् निपुण है वह चारण कहलाता है। तप विशेष से उत्पन्न हुई, आकाशस्थित जीवों के (वध के) परिहार की कुशलता से जो सहित है वह आकाशचारण है। और आकाश में गमन करने मात्र से आकाशगामी कहलाता है। (अर्थात् आकाशगामी को जीव वध परिहार की अपेक्षा नहीं होती)। सामान्य आकाशगामित्व की अपेक्षा जीवों के वध परिहार की कुशलता से विशेषित आकाशगामित्व के विशेषता पायी जाने से दोनों में भेद हैं।
देखें ऋद्धि - 4।