इच्क्षुरस
From जैनकोष
ईख का रस । तीर्थंकर वृषभदेव के समय में यह रस छहों रसों के स्वाद से युक्त होकर स्वयं स्रवित होता था । यह बल, वीर्य का वर्द्धक था । उस समय की प्रजा का मुख्य आहार था । कालांतर में काल के प्रभाव से यह रस निकाला जाने लगा । वृषभदेव ने तपश्चर्या मे जब रस-परित्याग किया तो उसमें इक्षुरस का त्याग भी सम्मिलित था । महापुराण 20.177, 63.354, पद्मपुराण 3.233 -234