अन्नप्राशन
From जैनकोष
गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में दसवीं किया । इससे जन्म से सात आठ मास बाद गर्भाधान आदि के समान पूजा-आदि कर शिशु को विधिपूर्वक अन्नाहार कराया जाता है । महापुराण 38. 55-63, 70-76,95, इस क्रिया के लिए ‘‘दिव्यामृतभागी भव’’ ‘‘विजयामृतभागी भव’’ और ‘‘अक्षीणामृतभागी भव’’ ये मंत्र व्यवहृत होते हैं । महापुराण 40.141-142, वृषभदेव ने अपने पुत्र भरत को इसी विधि से प्रथम अन्नाहार कराया था । महापुराण 15.164 देखें गर्भान्वय क्रिया