अप्रमतसंयत
From जैनकोष
सातवाँ गुणस्थान । इस गुणस्थान के जीव हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों से विरत होते हैं और उनकी भावनाएं विशुद्ध होती है । महापुराण 20.242, हरिवंशपुराण 3.81-89 देखें गुणस्थान
सातवाँ गुणस्थान । इस गुणस्थान के जीव हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों से विरत होते हैं और उनकी भावनाएं विशुद्ध होती है । महापुराण 20.242, हरिवंशपुराण 3.81-89 देखें गुणस्थान