इंद्रोपपादक्रिया
From जैनकोष
गर्भान्वय की तिरेपन क्रियाओं मे तैंतीसवीं क्रिया । इम क्रिया की प्राप्त जीव देवगति में उपपाद दिव्य शय्या पर क्षणभर में पूर्ण यौवन को प्राप्त हो जाता है और दिव्यतेज से युक्त होते हुए वह परमानंद में निमग्न हो जाता है । तभी अवधिज्ञान से उसे अपने इंद्र रूप में उत्पन्न होने का बोध हो जाता है । महापुराण 38.55-63, 190-194