किल्विषिक
From जैनकोष
वाद्य वादक देव । ये अन्य जातियों के देवों के आगे-आगे नगाड़े बजाते हुए चलते हैं । इनके पापकर्म का उदय रहता है । स्वल्प पुण्य के अनुसार स्वल्प ऋद्धियाँ ही इन्हें प्राप्त रहती है । ये अंत्यजों की भाँति अन्य देवों से बाहर रहते हैं । महापुराण 22.20,30, हरिवंशपुराण 3.136, वीरवर्द्धमान चरित्र 14.41