गृहस्थ
From जैनकोष
ब्रह्मचर्य के बाद का आश्रम । इस आश्रम में विवाह के पश्चात् गृहस्थ समाज सेवा के कार्यों में प्रवृत्त होता है । महापुराण 15.61-76, 38.124-127
ब्रह्मचर्य के बाद का आश्रम । इस आश्रम में विवाह के पश्चात् गृहस्थ समाज सेवा के कार्यों में प्रवृत्त होता है । महापुराण 15.61-76, 38.124-127