विरागविचय
From जैनकोष
धर्म ध्यान का छठा भेद । शरीर अपवित्र है और भोग विपाक फल के समान मनोहर है अत: इनसे विरक्त रहना ही श्रेयस्कर है ऐसा चिंतन करना विरागविचय धर्मध्यान है । हरिवंशपुराण 56.46
धर्म ध्यान का छठा भेद । शरीर अपवित्र है और भोग विपाक फल के समान मनोहर है अत: इनसे विरक्त रहना ही श्रेयस्कर है ऐसा चिंतन करना विरागविचय धर्मध्यान है । हरिवंशपुराण 56.46