संस्थान-विचय
From जैनकोष
धर्मध्यान के दस भेदों में आठवाँ भेद । आकाश के मध्य में स्थित लोक चारों ओर से तीन वातवलयों से वेष्ठित है । ऐसा लोक के आकार का विचार करना संस्थान-विचय धर्मध्यान कहलाता है । महापुराण 2. 148-154, हरिवंशपुराण 56.480
धर्मध्यान के दस भेदों में आठवाँ भेद । आकाश के मध्य में स्थित लोक चारों ओर से तीन वातवलयों से वेष्ठित है । ऐसा लोक के आकार का विचार करना संस्थान-विचय धर्मध्यान कहलाता है । महापुराण 2. 148-154, हरिवंशपुराण 56.480