संकोच
From जैनकोष
तत्त्वार्थसूत्र/5/16 प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् । दीप के प्रकाश के समान जीव के प्रदेशों का संकोच विस्तार होता है। अधिक जानकारी के लिए देखें जीव - 3।
तत्त्वार्थसूत्र/5/16 प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् । दीप के प्रकाश के समान जीव के प्रदेशों का संकोच विस्तार होता है। अधिक जानकारी के लिए देखें जीव - 3।