संभिन्न श्रोतृत्व ऋद्धि
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/९८४-९८६ सोदिंदियसुदणाणावरणाणं वीरियंतरायाए। उक्कस्सक्खउवसमे उदिदं गोवंगाणामकम्मम्मि ।९८४। सोदुक्कस्सखिदीदो बाहिं संखेज्जजोयणपएसे। संठियणरतिरियाणं बहुविहसद्दे समुट्ठंते ।९८५। अक्खरअणक्खरमए सोदूणं दसदिसासु पत्तेक्कं। जं दिज्जदि पडिवयणं तं चिय संभिण्णसोदित्तं ।९८६।
= श्रोत्रेन्द्रियावरण, श्रुतज्ञानावरण, और वीर्यान्तराय का उत्कृष्ट क्षयोपशम तथा अंगोपांग नामकर्म का उदय होने पर श्रोत्रेन्द्रिय के उत्कृष्ट क्षेत्र से बाहर दशों दिशाओं में संख्यात योजन प्रमाण क्षेत्र में स्थित मनुष्य एवं तिर्यंचों के अक्षरानक्षरात्मक बहुत प्रकार के उठने वाले शब्दों को सुनकर जिससे (युगपत्) प्रत्युत्तर दिया जाता है, वह संभिन्नश्रोतृत्व नामक बुद्धि ऋद्धि कहलाती है।
देखें ऋद्धि - 2.5 ।