युग
From जैनकोष
- दो कल्पों का एक युग होता है।
- युग का प्रारम्भ − दे. काल/४।
- कृतयुग या कर्मभूमि का प्रारम्भ−दे. काल/४।
- क्षेत्र का प्रमाण विशेष। अपरनाम दण्ड, मुसल, नाली − दे. गणित/I/१/३।
- काल का प्रमाण विशेष।
- दे. गणित/I/१/४।
युग−ध. १४/५, ६, ४१/३८/९ गरुवत्तणेण महल्लत्तणेण य जं तुरयवेसरादीहि वुब्भदि तं जुगं णाम। = जो बहुत भारी होने से और बहुत बड़े होने से घोड़ा और खच्चर आदि के द्वारा ढोया जाता है, वह युग कहलाता है।