वज्रजंघ
From जैनकोष
- म. पु./सर्ग/श्लो. - ‘‘पुष्कलावती देश के उत्पलखेट नगर के राजा वज्रबाहु का पुत्र था। (६/२९)। पूर्व के देव भव की देवी स्वयंप्रभा में अत्यन्त अनुरक्त था। (६/४८)। श्रीमती का चित्र देखकर पूर्व भव स्मरण हो आया। (७/१३७-१४०)। और उसका पाणिग्रहण किया। (७/२४९)। ससुर के दीक्षा लेने पर ससुराल जाते समय मार्ग में मुनियों को आहार दान दिया। (८/१७३)। एक दिन शयनागार में धूपघटों के सुगन्धित धूएँ से दम घुट जाने के कारण अकस्मात् मृत्यु आ गयी। (९/२७)। पात्रदान के प्रभाव से भोगभूमि में उत्पन्न हुआ। (८/३३)। यह भगवान् ऋषभदेव का पूर्व का सातवाँ भव है। (दे. ऋषभ देव)।
- प. पु./सर्ग/श्लोक-पुण्डरीकपुर का राजा था। (९७/१८३)। राम द्वारा परित्यक्त सीता को वन में देख उसे अपने घर ले गया। (९९/१-४)। उसी के घर पर लव और कुश उत्पन्न हुए। (१००/१७-१८)।