वस्तु
From जैनकोष
लि.वि./मूलवृत्ति/४/१५/२९३/११ परिणामो वस्तुलक्षणम्। = परिणमन करते रहना यहाँ वस्तु का लक्षण है।
का.अ./मू./२२५ जं वत्थु अणेयंतं ते चिय कज्जं करेदि णियमेण। बहु धम्मजुदं अत्थं कज्जकरं दीसदे लोए। = जो वस्तु अनेकान्तस्वरूप है, वही नियम से कार्यकारी है। क्योंकि लोक में बहुत धर्म युक्त पदार्थ ही कार्यकारी देखा जाता है। - (विशेष दे. द्रव्य)
स्या.मं./५/३०/६ वस्तुनस्तावदर्थ क्रियाकारित्वं लक्षणम्।
स्या.मं./२३/२७२/६ वसन्ति गुणपर्याया अस्मिन्निति वस्तु। = अर्थक्रियाकारित्व ही वस्तु का लक्षण है। अथवा जिसमें गुणपर्यायें वास करें वस्तु है।
दे. द्रव्य/१/७ - (सत्त, सत्त्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ, विधि ये सब एकार्थवाची शब्द हैं)।
दे. द्रव्य/१/४ (वस्तु गुणपर्यायात्मक है)।
दे. सामान्य (वस्तु सामान्य विशेषात्मक है)।
दे. श्रुतज्ञान/II.(वस्तु श्रुतज्ञान के एक भेद का नाम है)।