विचार
From जैनकोष
त.सू./९/४४ वीचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिः।४४।–अर्थ, व्यञ्जन और योग की संक्रान्ति वीचार है।
स.सि./९/४४/४५५/१३ एवं परिवर्तनं वीचार इत्युच्यते। = इस प्रकार के (अर्थ व्यञ्जन व योग के) परिवर्तन को वीचार कहते हैं। (रा.वा./९/४४/-/६३४/१३)।
रा.वा./१/१२/११/५५/१८ आलम्ब ने अर्पणा वितर्कः, तत्रैवानुमर्शनं विचारः। = विषय के प्रथम ज्ञान को वितर्क कहते हैं। उसी का बार-बार चिन्तवन विचार कहलाता है।
दे.विचय–(विचय, विचारणा, परीक्ष और मीमांसा ये समानार्थक शब्द हैं।)
- सविचार अविचार भक्त प्रत्य ख्यान–दे.सल्लेखना/३।
- सविचार व अविचार शुक्लध्यान- दे.शुक्लध्यान।