वितर्क
From जैनकोष
त.सू./९/४३ वितर्कः श्रुतम्।४३। = वितर्क का अर्थ श्रुत है।
दे. ऊहा–(विशेष रूप से ऊहा या तर्कणा करना वितर्क अर्थात् श्रुतज्ञान कहलाता है।
दे. विचार–(विषय के प्रथम ज्ञान को वितर्क कहते हैं।)
द्र.सं./टी./४८/२०३/६ स्वशुद्धात्मानुभूतिलक्षणं भावश्रुतं तद्वाचकमन्तर्जल्पवचनं वा वितर्को भण्यते। = निज शुद्ध आत्मा का अनुभवरूप भावश्रुत अथवा निज शुद्धात्मा को कहने वाला जो अन्तरंग जल्प (सूक्ष्म शब्द) है वह वितर्क है।