विद्याधर
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ध.९/४, १, १६/७७/१० एवमेदाओ तिविहाओ विज्जाओ होंति विज्जाहराणं। तेण वेअड्ढणिवासिमणुआ वि विज्जाहरा, सयलविज्जाओ छंडिऊण गहिदसंजमविज्जाहरा वि होंति विज्जाहरा, विज्जाविसयविण्णाणस्स तत्थुवलंभादो। पढिदविज्जाणुपवादा विज्जाहरा, तेसिं पि विज्जाविसयविण्णाणुवलंभादो। = इस प्रकार से तीन प्रकार की विद्याएँ (जाति, कुल व तप विद्या) विद्याधरों के होती हैं। इससे वैताढय पर्वत पर निवास करने वाले मनुष्य भी विद्याधर होते हैं। सब विद्याओं को छोड़कर संयम को ग्रहण करने वाले भी विद्याधर होते हैं, क्योंकि विद्याविषयक विज्ञान वहाँ पाया जाता है जिन्होंने विद्यानुप्रवाद को पढ़ लिया है वे भी विद्याधर हैं, क्योंकि उनके भी विद्याविषयक विज्ञान पाया जाता है।
त्रि.सा./७०९ विज्जाहरा तिविज्जा वसंति छक्कम्मसंजुत्ता। = विद्याधर लोग तीन विद्याओं से तथा पूजा उपासना आदि षट्कर्मों से संयुक्त होते हैं।
- विद्याधर खचर नहीं हैं
ध.११/४,२,६,१२/११५/६ ण विज्जाहराणं खगचरत्तमत्थि विज्जाए विणा सहावदो चेव गगणगमणसमत्थेसु खगयत्तप्पसिद्धीदो। = विद्याधर आकाशचारी नहीं हो सकते, क्योंकि विद्या की सहायता के बिना जो स्वभाव से ही आकाश गमन में समर्थ हैं उनमें ही खचरत्व की प्रसिद्धि है।
- विद्याधर सुमेरु पर्वत पर जा सकते हैं
म.पु./१३/२१६ साशङ्कं गगनेचरैः किमिदमित्यालोकितो यः स्फुरन्मेरोर्मूद्र्ध्नि स नोऽवताज्जिनविभोर्जन्मोत्सवाम्भः प्लवः।२१६। = मेरु पर्वत के मस्तक पर स्फुरायमान होता हुआ, जिनेन्द्र भगवान् के जन्माभिषेक को उस जलप्रवाह को, विद्याधरों ने ‘यह क्या है’ ऐसी शंका करते हुए देखा था।२१६।
- विद्याधर लोक निर्देश
ति.प./४/गा. का भावार्थ–जम्बुद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित विजयार्ध पर्वत के ऊपर दश योजन जाकर उस पर्वत के दोनों पार्श्व भागों में विद्याधरों की एक-एक श्रेणी है।१०९। दक्षिण श्रेणी में ५० और उत्तर श्रेणी में ६० नगर हैं।१११। इससे भी १० योजन ऊपर जाकर आभियोग्य देवों की दो श्रेणियाँ हैं।१४०। विदेह क्षेत्र के कच्छा देश में स्थित विजयार्द्ध के ऊपर भी उसी प्रकार दो श्रेणियाँ हैं।२२५८। दोनों ही श्रेणियों में ५५-५५ नगर है ।२२५८। शेष ३१ विदेहों के विजयार्द्धों पर भी इसी प्रकार ५५-५५ नगर वाली दो-दो श्रेणियाँ हैं।२२९२। ऐरावत क्षेत्र के विजयार्ध का कथन भी भरतक्षेत्र वत् जानना।२३६५। जम्बूद्वीप के तीनों क्षेत्रों के विजयार्धों के सदृश ही धात की खण्ड व पुष्करार्ध द्वीप में जानना चाहिए।२७१६, २९२। (रा.वा./३/१०/४/१७२/१); (ह.पु./२२/८४); (म.पु./१९/२७-३०); (ज.प./२/३८-३९); (त्रि.सा./६९५-६९६)।
दे. काल/४//१४ – [इसमें सदा चौथा काल वर्तता है।]
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पेज ५४६ टेबल - ६. अन्य सम्बन्धित विषय
- विद्याधरों में सम्यक्त्व व गुणस्थान।–दे. आर्यखण्ड।
- विद्याधर नगरों में सर्वदा चौथा काल वर्तता है।–दे. काल/४/१४।
- विद्याधरों में सम्यक्त्व व गुणस्थान।–दे. आर्यखण्ड।