जय
From जैनकोष
न्याय सम्बन्धी वाद में जय-पराजय व्यवस्था– देखें - न्याय / २ ।
- भाविकालीन २१वें तीर्थंकर– देखें - तीर्थंकर / ५ ;
- (वृ.कथा कोश/कथा नं.६/पृ.) सिंहलद्वीप के राज गगनादित्य का पुत्र था (१७) पिता की मृत्यु के पश्चात् उसने एक मित्र उज्जयिनी नगरी के राजा के पास में रहने लगा। वहा एक दिन भोजन करते समय अपने भाई के मुख से सुना कि यह भोजन ‘विषान्न’ है। ‘विषान्न’ कहने से उसका तात्पर्य पौष्टिक था, पर वह इसका अर्थ विषमिश्रित लगा बैठा और इसीलिए केवल विष खाने की कल्पना के कारण मर गया।१७-१८।