द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
From जैनकोष
<a id="II" name="II">द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
<a id="II.1" name="II.1">१. चक्रवर्ती का लक्षण
ति.प./१/४८ छक्खंड भरहणादो बत्तीससहस्समउडबद्धपहुदीओ। होदि हु सयलं चक्की तित्थयरो सयलभुवणवई।४८। =जो छह खण्डरूप भरतक्षेत्र का स्वामी हो और बत्तीस हज़ार मुकुट बद्ध राजाओं का तेजस्वी अधिपति हो वह सकल चक्री होता है।...।४८। (ध.१/१,१,१/गा.४३/५८) (त्रि.सा./६८५)
<a id="II.2" name="II.2">२. नाम व पूर्वभव परिचय
|
नाम |
पूर्व भव नं. २ |
पूर्वभव |
||
म.पु./सर्ग/श्लो. |
१.ति.प/४/५१५-५१६ २.त्रि.सा./८१५ ३.प.पु./२०/१२४-१९३ ४.ह.पु./६०/२८६-२८७ ५.म.पु./पूर्ववत् |
१. प.पु./२०/१२४-१९३ २. म.पु./पूर्ववत् |
१. प.पु./२०/१२४-१९३ २. म.पु./पूर्ववत् |
||
नाम राजा |
नगर |
दीक्षागुरु |
स्वर्ग |
||
|
भरत |
पीठ |
पुण्डरीकिणी |
कुशसेन |
सर्वार्थ सिद्धि २ अच्युत |
४८/६९-७८ |
सगर |
विजय २ जयसेन |
पृथिवीपुर |
यशोधर |
विजय वि. |
६१/९१-१०१ |
मघवा |
शशिप्रभ २ नरपति |
पुण्डरीकिणी |
विमल |
ग्रैवेयक |
६२/१०१/१०६ |
सनत्कुमार |
धर्मरुचि |
महापुरी |
सुप्रभ |
माहेन्द्र २ अच्युत |
६३/३८४ |
शान्ति* |
देखें - तीर्थंकर |
|||
६४/१२-२२ |
कुन्थु* |
देखें - तीर्थंकर |
|||
६५/१४-३० |
अर* |
देखें - तीर्थंकर |
|||
६५/५६ |
सुभौम |
कनकाभ २ भूपाल |
धान्यपुर |
विचित्रगुप्त २ सम्भूत |
जयन्त वि. २ महाशुक्र |
६६/७६-८० |
पद्म• |
चिन्त २ प्रजापाल |
वीतशोका २ श्रीपुर |
सुप्रभ २ शिवगुप्त |
ब्रह्मस्वर्ग २ अच्युत |
६७/६४-६५ |
हरिषेण |
महेन्द्रदत्त |
विजय |
नन्दन |
माहेन्द्र २ सनत्कुमार |
६९/७८-८० |
जयसेन ४ जय |
अमितांग २ वसुन्धर |
राजपुर २ श्रीपुर |
सुधर्ममित्र २ वररुचि |
ब्रह्मस्वर्ग २ महाशुक्र |
७२/२८७-२८८ |
ब्रह्मदत्त |
सम्भूत |
काशी |
स्वतन्त्रलिंग |
कमलगुल्म मि. |
*शान्ति कुन्थु और अर ये तीनों चक्रवर्ती भी थे और तीर्थंकर भी। •प्रमाण नं. २,३,४ के अनुसार इनका नाम महापद्म था। यह राजा पद्म उन्हीं विष्णुकुमार मुनि के बड़े भाई थे जिन्होंने ७५० मुनियों की राजा बलि कृत उपसर्ग से रक्षा की थी। |