Jain dictionary
From जैनकोष
अ
अज्ञानी पाप धतूरा न बोय
अति संक्लेश विशुद्ध शुद्ध पुनि
अन्तर उज्जवल करना रे भाई!
अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ
अब अघ करत लजाय रे भाई
अब घर आये चेतनराय
अब पूरी कर नींदड़ी, सुन जिया रे! चिरकाल
अब मेरे समकित सावन आयो
अब मोहि जानि परी
अब समझ कही
अरहंत सुमर मन बावरे
अरिरजरहस हनन प्रभु अरहन
अरे जिया, जग धोखे की टाटी
अरे हाँ रे तैं तो सुधरी बहुत बिगारी
अरे हो अज्ञानी तूने कठिन मनुषभव पायो
अरे हो जियरा धर्म में चित्त लगाय रे