भावपाहुड गाथा 132
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जीव का तथा उपदेश करनेवालों का स्वरूप जाने बिना सब जीवों के प्राणों का आहार किया इसप्रकार दिखाते हैं -
दसविहपाणाहारो अणंतभवसायरे भमंतेण ।
भोयसुहकारणट्ठं कदो य तिविहेण सयलजीवाणं ।।१३४।।
दशविधप्राणाहार: अनन्तभवसायरे भ्रता ।
भोगसुखकारणार्थं कृतश्च त्रिविधेन सकलजीवानां ।।१३४।।
भवभ्रमण करते आजतक मन-वचन एवं काय से ।
दश प्राणों का भोजन किया निज पेट भरने के लिये ।।१३४।।
अर्थ - हे मुने ! तूने अनंतभवसागर में भ्रमण करते हुए, सकल त्रस, स्थावर जीवों के दश प्रकार के प्राणों का आहार, भोग सुख के कारण के लिए मन, वचन, काय से किया ।
भावार्थ - अनादिकाल से जिनमत के उपदेश के बिना अज्ञानी होकर तूने त्रस-स्थावर जीवों के प्राणों का आहार किया, इसलिए अब जीवों का स्वरूप जानकर जीवों की दया पाल, भोगाभिलाष छोड़, यह उपदेश है ।।१३४।।